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Monday, July 22, 2019

श्रीलंका में फैलता कट्टरपंथ

ईस्टर रविवार को श्रीलंका में हुए आतंकवादी हमले ने भारत के लोगों को 26/11 को हुए मुंबई हमले की याद दिला दी, जब लश्कर-ए तैयबा के आतंकवादियों ने शहर के होटलों और यहूदी ठिकानों पर तीन सुनियोजित हमले किए थे। उसमें 165 लोग मारे गए थे और 300 लोग घायल हुए थे। आप श्रीलंका में हुए आतंकी हमले की गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि वहां लगभग 300 लोग मारे गए और 500 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं। श्रीलंका से आ रही खबरें बताती हैं कि आत्मघाती हमलावरों द्वारा नेगंबो, कोलंबो और बट्टीकलोआ स्थित तीन चर्चों पर एक ही समय 8.45 बजे बम विस्फोट किए गए थे। इसके अलावा तीन प्रमुख होटलों पर भी हमले किए गए।

वहां की सरकार ने पूरे द्वीप में कर्फ्यू लगा दिया है और पूरा देश इस अंदेशे में हाई अलर्ट पर है कि आने वाले दिनों में और भी हमले हो सकते हैं। ऐसी परिस्थिति में संभावित हमलों के बारे में अफवाहें फैलाई जा रही हैं। लेकिन पुलिस ने उन्हें गलत बताया है। हालांकि बंदरनाइक अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के नजदीक एक आईईडी पाया गया था, जिसे निष्प्रभावी कर दिया गया। राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना, जो सिंगापुर और भारत के निजी दौरे पर थे, तुरंत देश लौट गए हैं और उन्होंने इस घटना की जांच के लिए तीन सदस्यीय कमेटी नियुक्त कर दी है।

शुरुआती अटकलों के बाद श्रीलंका के एक मंत्री राजिता सेनरत्ने ने पुष्टि की कि नेशनल तौहीद जमात (एनटीजे) इसमें शामिल था और जिन लोगों को गिरफ्तार किया गया है, वे सभी स्थानीय लोग हैं। हालांकि उन्होंने कहा कि अधिकारियों को यह नहीं पता कि वे बाहरी लोगों से जुड़े थे या नहीं। पुलिस ने गिरफ्तार लोगों की पहचान और संबद्धता का अभी खुलासा नहीं किया है।

सेनरत्ने ने इन हमलों को भारी खुफिया विफलता बताया है, क्योंकि विदेशी खुफिया एजेंसी से इस संबंध में चार अप्रैल को ही सूचना मिल गई थी, लेकिन पुलिस के अधिकारियों को इसके बारे में नौ अप्रैल को बताया गया और संदिग्ध लोगों के नाम तक उपलब्ध कराए गए। 11 अप्रैल को डीआईजी प्रियालाल दासनायके ने कोलंबो में होटलों पर बमबारी, चर्चों और भारतीय उच्चायोग के कार्यालय पर हमले के संबंध में चेतावनी जारी की थी। उन्होंने बताया था कि इन हमलों का संचालन एनटीजे के प्रमुख मोहम्मद जहरान करेंगे। हो सकता है कि इस चेतावनी से पूरे द्वीप में वीआईपी सुरक्षा मजबूत की गई हो, लेकिन पवित्र ईस्टर के त्योहार में चर्चों और होटलों की सुरक्षा बढ़ाने के लिए कुछ नहीं किया गया।

वास्तव में समस्या श्रीलंका की विभाजित सरकार के कारण है, क्योंकि राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री, दोनों में तालमेल नहीं है। प्रेस कांफ्रेंस में सेनरत्ने ने बताया कि दासनायके की चेतावनी के बारे में प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे को नहीं बताया गया, जिन्हें सुरक्षा परिषद की बैठकों से भी बाहर रखा गया था। भले ही पुलिस का कहना है कि सभी स्थानीय लोग इसमें शामिल थे, लेकिन हमलों की भीषणता को देखते हुए इसकी काफी आशंका है कि इसके पीछे खूंखार आतंकी तत्वों, संभवतः इस्लामिक स्टेट का हाथ रहा हो। श्रीलंका की कुल आबादी में 70.2 प्रतिशत बौद्ध, 12.6 फीसदी हिंदू, करीब 9.7 फीसदी मुस्लिम और 7.4 फीसदी ईसाई हैं। श्रीलंका ने हिंदू और बौद्ध, दोनों तरह के कट्टरपंथ को देखा है, लेकिन मुस्लिम शांतिपूर्ण रहे हैं। हालांकि उनमें भी कुछ कट्टरवादी तत्व रहे हैं। वर्ष 2016 में श्रीलंका की संसद में बताया गया था कि श्रीलंका के अच्छे पढ़े-लिखे परिवारों के करीब 32 मुस्लिम इस्लामिक स्टेट में शामिल हो गए हैं।

एनटीजे एक अज्ञात संगठन है, जिसके आतंकवाद का कोई इतिहास नहीं है। पिछले वर्ष यह एक बौद्ध प्रतिमा को तोड़ने में संलिप्त रहा था और इसके सचिव अब्दुल रजिक को नस्लवाद भड़काने के लिए गिरफ्तार किया गया था। हालांकि एनटीजे बहुत से वैश्विक इस्लामी आंदोलनों का हिस्सा रहा है, जो पूरे विश्व में अपनी तरह के इस्लाम का प्रसार करना चाहते हैं। इस बात की ज्यादा आशंका है कि एनटीजे में इस्लामिक स्टेट जैसे कुछ ज्यादा कट्टरपंथी तत्वों ने घुसपैठ की हो, जिनमें एनटीजे की आड़ में इन हमलों को अंजाम देने की क्षमता थी।

संयोग से एक तमिलनाडु तौहीद जमात भी है, यह भी एक इस्लामी संगठन है, लेकिन इसकी गतिविधियां सामाजिक क्षेत्रों में हैं, जो सामुदायिक रसोई चलाने और रक्तदान शिविर आयोजित करने का काम करता है। हालांकि हमेशा यह चिता रहती है कि कभी-कभी ये संगठन वैचारिक आधार रखते हैं और उनके कुछ अपराध हिंसक होते हैं।

भारत श्रीलंका की घटनाओं को बहुत ध्यान से देख रहा होगा। पिछले कुछ समय से, नई दिल्ली में कट्टरपंथी इस्लामी समूहों को लेकर चिंता है, जो दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया में फैलते जा रहे हैं। भारतीय खुफिया एजेंसियों ने कहा है कि भारत या उसके पड़ोस में इस्लामिक स्टेट का प्रभाव उतना महत्वपूर्ण नहीं है, लेकिन बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान जैसे देशों में इस्लामिक स्टेट की शाखाएं हैं। विशेष रूप से सीरिया में इस्लामिक स्टेट के खत्म होने के बाद सीरिया से लौटे कट्टरपंथियों को लेकर चिंता है। हालांकि भारत ने इस पर बहुत ज्यादा चिंता नहीं जताई है, लेकिन मालदीव जैसे देश सीरिया से लौटने वाले कट्टरपंथियों के कारण असुरक्षित हो सकते हैं। इसी तरह दक्षिण पूर्व एशिया में इस्लाम का पुनरुत्थान हुआ है, जहां 27 करोड़ मुसलमान रहते हैं। इस्लामी कट्टरपंथियों की दक्षिण पूर्वी एशिया में लंबे समय से मौजूदगी रही है और इस क्षेत्र के सैकड़ों लड़ाके इस्लामिक स्टेट में शामिल हुए थे। मई, 2017 में फिलीपींस की सरकार ने मारवी शहर को इस्लामी तत्वों के कब्जे से बचाने के लिए पांच महीने तक सैन्य अभियान चलाया था। तब से इंडोनेशिया में कई चर्चों पर बम धमाके हुए हैं और इस क्षेत्र के देशों ने उनकी गतिविधियों को रोकने के लिए आपसी सहयोग बढ़ाया है।
Amar Ujala,  April 22, 2019

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